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आग जलनी चाहिए | Mere sine me na sahi tere seene me hi sahi

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। -दुष्यंत कुमार  मेरे दिल में न सही, तेरे दिल में ही सही,  अगर, दिल में हो आग, वो आग जलनी चाहिए। सारांश: खुद को जिंदा समझते हो तो विरोध करना सीखो, क्योंकि लहर के साथ लाशें बहती हैं, तैराक नहीं। Surat badalni chaiye bhavarth Hindi  यह पंक्तियां क्रांतिकारी कवि दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल से ली गई हैं। ये आंदोलन, बदलाव और सामाजिक जागरूकता की तीव्र पुकार हैं। आइए हर शेर का भावार्थ समझते हैं: हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। समाज की पीड़ा अब इतनी बढ़ गई है कि वह स्थिर पर्वत जैसी भारी हो चुकी है। अब वक्त आ गया है कि इस पीड़ा से कोई समाधान निकले, जैसे हिमालय से गंग...

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