Handwoven cotton is known for its breathability which makes it cooler in summers and warm in winters.
हथकरघा क्यों? Why handloom
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के भाव मुनि श्री निरीहसागर जी महाराज की लेखनी से:
- हथकरघा के लाभ
- भारतीय संस्कृति एवं धन की रक्षा
- शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा
- अपराध में कमी
- मानसिक तनाव से छुटकारा
- स्वरोजगार स्वाश्रितपना
- अहिंसक वस्त्र धार्मिक दृष्टि
- आर्तध्यान का संहारक
- रौद्रध्यान का निस्तारक
- धर्मध्यान का विस्तारक
- भारतीय संस्कृति की रक्षा
वर्ष २०१७ सुशील कुमार, चंपारन (बिहार) टाइपिस्ट की नौकरी करने वाले ने अभिताभ बच्चन द्वारा संचालित कौन बनेगा करोड़पति में ५ करोड़ रूपये जीते जिसमें १२ या १३ वाँ प्रश्न हथकरघा से संबंधित था। प्रश्न - 'भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी ने १९ वर्ष की अवस्था में अपने विवाह के समय देहेज बतौर कुछ गज खादी के कपड़े के साथ और क्या माँगा था'
१.गाँधी टोपी, २. भगवद्गीता ३. चरखा ४. खाड़ाऊ (चप्पल)। उत्तर लाइफ लाइन के प्रयोग से मिला "चरखा" जो कि सही उत्तर था किन्तु फिर जिन्होंने उत्तर दिया था उनसे पूछा गया चरखा ही क्यों माँगा तब उन्होंने उत्तर दिया कि मैंने श्री लालबहादुर शास्त्री जी की जीवनी पढ़ी थी उसमें यह लिखा था कि चरखा इसलिये मांगा ताकि वे चरखे से धागा तथा उससे वस्त्र बनाकर हथकरघा के वस्त्रों का उपयोग करते रहेंगे।
- शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा
परम उपकारी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने चिंतन से कहा विज्ञान ने कई शोध किये, तरक्की की, ऊंचाईयों को छुआ, चाँद पर पहुँच गया, आधुनिक तकनीकि से ऊँचे भवन, चिकित्सा पद्धति की मशीनें एवं आधुनिक कई प्रकार के यंत्र, मापने व चिकित्सा हेतू आ गये , लेकिन आज- तक इस सूती हथकरघा की जालीदार पट्टी में कोई परिवर्तन नहीं आया। क्योंकि सूती वस्त्र से ही शारीरिक रोग, घाव आदि शीघ्र स्वस्थ हो जातें हैं।
पूज्य श्री जी ने यह भी कहा सूती खादी हथकरघा के वस्त्र गर्मी में पसीना सोखते हैं 'गर्मी कम लगती है एवं ठंड के समय ठंडी कम लगती है' इससे विपरीत पोलिस्टर, टेरीकॉट आदि वस्त्रों में गर्मी में और ज्यादा गर्मी लगती है, ठंड में और ज्यादा ठंड लगती है अर्थात् शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ता है कई प्रकार के चर्म रोग उत्पन्न होते हैं बड़ी बीमारी कैंसर तक होने की संभावना बढ़ती है।
- धर्मध्यान का विस्तारक है हथकरघा: विपाकविचय धर्मध्यान
तू ने किया विगत में कुछ पुण्य पाप,
जो आ रहा उदय में स्वयमेव आप।
होगा न बंध तब लौं, जब लौं न राग,
चिंता नहीं उदय से, बन वीतराग ।।८६।।
निजानुभव शतक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
विपाकविचय धर्मध्यान अर्थात् जो भी अच्छे-बुरे कर्म उदय में आ रहे हैं, हमारे पूर्व में किये हुय कार्यों के कारण ही आ रहे हैं। जो इन हथकरघा के अहिंसक वस्त्रों को धारण करता है, उसके परिणामों में निर्मलता रहती है, वह किसी भी बुरे असाता कर्म के उदय में दूसरों को दोषी नहीं ठहराता है, स्वयं के कर्म को ही दोषी कहता है, संतोष गुण धारण कर स्वीकारता है, सम्यग्दर्शन सुरक्षित रखता है।
- धर्मध्यान का विस्तारक है हथकरघा: संस्थानविचय धर्मध्यान
आकाश सदृश विशाल, विशुद्ध सत्ता,
योगी उसे निरखते वह बुद्धिमत्ता।
सत्यं शिवं परम सुन्दर भी वही है,
अन्यत्र छोड़ उसको सुख ही नहीं है ।।१५।।
निजानुभव शतक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
संस्थानविचय धर्मध्यान- अस्तित्वगत जो भी सत्य है, जिस भी वस्तु का अस्तित्व है उसे उस रूप में ही देखना। हथकरघा प्रकल्प के माध्यम से सभी के लिए समान रूप से आजीविका के साधन उपलब्ध कराए जाते हैं। उसमें उनको उसी रूप में देखा जाता है जिस रूप में वे हैं, उनको ऊंच-नीच अमीर-गरीब आदि माने बिना, उनके हित की बात विचारी जाती है। हथकरघा के वस्त्रों को प्रयोग करते समय भी यह भाव बना रहता है। वह संसार, शरीर, भोग सबको नश्वर क्षणिक देखते हुये उसका चिन्तन करता है अर्थात् लोक का चिन्तन करता है।
जो इतनी सारी नियमावली का पालन करेगा वह धीरे-धीरे अपने आप ही अणुव्रत व महाव्रतों को धारण कर लेगा तभी तो कहा कि धर्मध्यान का विस्तारक है हथकरघा।
इस प्रकार हथकरघा पतन से उत्थान की ओर आत्म कल्याण करने सहयोगी निमित्त कारण बन जाता है।