The production process at KhadiVadi does not give out even a little amount of carbon dioxide, and our products are 100% pure.
पॉलिएस्टर के उपयोग से कौन कौन से नुक्सान होते है?
पॉलिएस्टर पहनते समय आपकी त्वचा के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, शरीर का बढ़ता तापमान इस कपड़े से रसायनों को छोड़ने में मदद करता है जो बाद में आपकी त्वचा द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। इससे रैशेज, खुजली, लालिमा, एक्जिमा और डर्मेटाइटिस जैसी कई तरह की समस्याएं और परेशानियां हो सकती हैं।
हथकरघा क्यों? Why handloom
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के भाव मुनि श्री निरीहसागर जी महाराज की लेखनी से:
- शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा
परम उपकारी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने चिंतन से कहा विज्ञान ने कई शोध किये, तरक्की की, ऊंचाईयों को छुआ, चाँद पर पहुँच गया, आधुनिक तकनीकि से ऊँचे भवन, चिकित्सा पद्धति की मशीनें एवं आधुनिक कई प्रकार के यंत्र, मापने व चिकित्सा हेतू आ गये , लेकिन आज- तक इस सूती हथकरघा की जालीदार पट्टी में कोई परिवर्तन नहीं आया। क्योंकि सूती वस्त्र से ही शारीरिक रोग, घाव आदि शीघ्र स्वस्थ हो जातें हैं।
पूज्य श्री जी ने यह भी कहा सूती खादी हथकरघा के वस्त्र गर्मी में पसीना सोखते हैं 'गर्मी कम लगती है एवं ठंड के समय ठंडी कम लगती है' इससे विपरीत पोलिस्टर, टेरीकॉट आदि वस्त्रों में गर्मी में और ज्यादा गर्मी लगती है, ठंड में और ज्यादा ठंड लगती है अर्थात् शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ता है कई प्रकार के चर्म रोग उत्पन्न होते हैं बड़ी बीमारी कैंसर तक होने की संभावना बढ़ती है।
- आर्तध्यान का संहारक, रौद्रध्यान का निस्तारक, धर्म ध्यान का विस्तारक है हथकरघा
डोंगरगढ़ (चन्द्रगिरी) छ० ग० २०१७ ग्रीष्मकाल की बात है आर्यिका १०५ आदर्शमति माताजी के संघ की २५ पूर्वपीठिका की बहनें इंदौर से आचार्य श्री जी के दर्शन हेतु पहुंचीं। उनमें से किसी बहन ने प्रश्न रखा कि इन्दौर में हथकरघा के विषय में अन्य संघ से चलित दूरभाष में संदेश समाचार चल रहा है की मोक्षमार्ग में आत्म कल्याण की बात आती है ये वस्त्रों का बनवाना विक्रय करवाना व्यापार आदि करना ये इस प्रकार के कार्य किसी भी मोक्ष मार्गी को करना चाहिये क्या?
आचार्य श्री जी ने पूरी बात सुनने के बाद उत्तर में कहा आर्तध्यान का संहारक है हथकरघा, रौद्रध्यान का निस्तारक है हथकरघा, धर्मध्यान का विस्तारक है हथकरघा । उपर्युक्त सारी बातें पूज्य १०८ मुनिश्री संधान सागरजी महाराज की डायरी में लिखी थीं उनकी अनुमति से वह डायरी पढ़ी थी अर्थ उसमें कुछ नहीं लिखा था, समय बीता, खजुराहो २०१८ वर्षायोग में पू० आचार्य श्री जी के साथ ससंघ थे वर्षायोग के दौरान एक रात्रि ११ बजे निद्रा टूटी प्रशस्त वातावरण था निद्रा आ नहीं रही थी न तो ठंड या गर्मी लग रही थी, न ही मच्छर आदि परेशान कर रहे थे। बस अच्छा लग रहा था, शांति से खाली बैठे रहे अचानक इन ऊपर लिखे बिन्दु के विषय में सोचना प्रारंभ किया आर्तध्यान का संहारक हथकरघा कैसे? थोड़ा प्रभेद किया आर्तध्यान का इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, पीड़ा चिन्तन, निदान बन्ध । क्रमशः जो हथकरघा के वस्त्रों का प्रयोग सदा ही करेगा उसे कोई भी बीमारी, चर्म रोग, या बड़ी बीमारी नही होगी वह स्वस्थ्य रहेगा व पूर्णायु प्राप्त करेगा अल्पायु में मरण को प्राप्त नहीं होगा। जब अल्पायु में घर का कोई सदस्य मरण को प्राप्त नहीं होगा तो इष्ट वियोग नाम का अर्तध्यान नहीं होगा। एवं कोई बीमारी भी नहीं होगी तो अनिष्ट संयोग आर्तध्यान नहीं होगा और जब कोई बीमारी, रोग नहीं होगा तो पीड़ा नहीं होगी अर्थात् पीड़ा चिन्तन आर्तध्यान नहीं होगा एवं इस हथकरघा के वस्त्रों से ये तीन आर्तध्यान नहीं होंगें तथा परिणाम निर्मल होंगे तो निदान बन्ध आर्तध्यान भी नहीं करेगा अर्थात् आर्तध्यान का संहारक है हथकरघा।